टीकाकरण के बावजूद दो बच्चों की मौत, प्रशासन ने शुरू की जांच
यह खबर उत्तर प्रदेश के झाँसी से है, जहाँ डिप्थीरिया (जिसे आम भाषा में ‘गलघोंटू’ कहते हैं) के कारण दो बच्चों की मौत हो गई है। चौंकाने वाली बात यह है कि इन बच्चों को बीमारी से बचाने के लिए टीके लगाए गए थे। इस घटना के बाद, जिला प्रशासन हरकत में आ गया है और झाँसी के जिलाधिकारी (डीएम) ने इस मामले की गहनता से जांच के लिए एक टीम का गठन किया है।
यह मामला गुरसराय क्षेत्र के मोती कटरा गाँव का है, जहाँ डिप्थीरिया के तीन मामले सामने आए थे। इनमें से दो बच्चों की मौत हो चुकी है, जबकि तीसरे बच्चे का इलाज जारी है।

प्रशासन का सख्त रुख और बचाव के उपाय
जिलाधिकारी ने इस घटना को गंभीरता से लेते हुए स्वास्थ्य विभाग को तुरंत कार्रवाई करने का आदेश दिया है। उन्होंने गुरसराय ब्लॉक के स्वास्थ्य अधिकारी को मोती कटरा गाँव के 3 किलोमीटर के दायरे में घर-घर जाकर सर्वे करने और बीमारी को फैलने से रोकने के उपाय करने का निर्देश दिया है। इसके अलावा, जिलाधिकारी ने टीकाकरण की स्थिति की भी समीक्षा की और निजी अस्पतालों को चेतावनी दी है कि अगर वे बीसीजी का टीकाकरण नहीं करेंगे, तो उनके लाइसेंस रद्द कर दिए जाएंगे।
डिप्थीरिया क्या है और इसके लक्षण?
मेडिकल कॉलेज के बाल रोग विभागाध्यक्ष डॉ. ओमशंकर चौरसिया के अनुसार, डिप्थीरिया एक गंभीर संक्रमण है जो गले से शुरू होता है। इसके शुरुआती लक्षणों में गले में खराश, दर्द, कुछ निगलने में परेशानी, सिरदर्द और बुखार शामिल हैं। जैसे-जैसे संक्रमण बढ़ता है, गले में सूजन, आवाज़ में भारीपन और सांस लेने में तकलीफ होने लगती है। यह बीमारी उन बच्चों में तेज़ी से फैलती है, जिन्हें टीके नहीं लगे होते।
झाँसी में अब तक चार बच्चों का इलाज किया गया है, जिनमें से दो की मौत हो चुकी है। इस बीमारी का एकमात्र बचाव टीकाकरण है।
टीकाकरण के बावजूद क्यों हुआ संक्रमण?
मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डॉ. सुधाकर पांडेय ने बताया कि जिन बच्चों को संक्रमण हुआ था, उनका टीकाकरण हो चुका था। उन्होंने कहा कि कई बार कमज़ोर प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) के कारण टीकाकरण के बाद भी संक्रमण होने का ख़तरा रहता है। तीसरे बच्चे को समय पर इलाज मिलने से उसकी हालत में सुधार हो रहा है।
डिप्थीरिया का टीका बच्चों को जन्म के बाद 6, 10 और 14 सप्ताह की उम्र में लगाया जाता है। इसके बाद 16 महीने, 5 साल, 10 साल और 16 साल की उम्र में बूस्टर डोज़ भी दिए जाते हैं।
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