मुर्शिदाबाद हिंसा 2025: भय से पलायन करते हिंदू परिवार और सामाजिक ताना-बाना
पश्चिम बंगाल का मुर्शिदाबाद जिला इन दिनों एक बार फिर सुर्खियों में है। हाल ही में यहां वक्फ अधिनियम में संशोधन को लेकर शुरू हुई झड़पें भीषण सांप्रदायिक हिंसा में तब्दील हो गईं। इस हिंसा की चपेट में मुख्य रूप से हिंदू समुदाय आया, जिससे सैकड़ों परिवारों को अपना घर छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा। इनमें से कई लोग झारखंड और बंगाल के अन्य जिलों में शरण ले रहे हैं।
पीड़ितों का कहना है कि उन्हें राज्य सरकार और स्थानीय पुलिस प्रशासन पर भरोसा नहीं रहा। वे केवल तभी लौटने की बात कर रहे हैं जब केंद्र सरकार द्वारा सीमा सुरक्षा बल की तैनाती की जाएगी। यह स्थिति केवल एक जिले की नहीं रह गई है, बल्कि मालदा, दिनाजपुर, बीरभूम और 24 परगना जैसे अन्य जिलों में भी तनाव का माहौल है।
इतिहास गवाह है कि जब-जब प्रशासन ने ऐसी घटनाओं को नजरअंदाज किया है, तब-तब स्थितियां और गंभीर हुई हैं। 1951 से 2011 के बीच बंगाल में मुस्लिम जनसंख्या में असमान्य वृद्धि हुई है। वहीं, पलायन करने वाले अधिकतर हिंदू ही हैं, जिससे साफ होता है कि यह केवल आर्थिक कारणों से नहीं, बल्कि सामाजिक असुरक्षा की भावना से भी जुड़ा हुआ मुद्दा है।
बांग्लादेश की सीमा से सटे जिलों में लंबे समय से अवैध घुसपैठ एक गंभीर समस्या रही है। आंकड़े बताते हैं कि इस कारण जनसंख्या संतुलन तेजी से बदल रहा है। खुलना और मुर्शिदाबाद जैसे जिले इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं, जहां दशकों में हिंदू जनसंख्या में भारी गिरावट दर्ज की गई है।
आज स्थिति यह है कि लोग अपने ही देश में विस्थापित होने को मजबूर हैं। यह न केवल संविधान के मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि सामाजिक समरसता के लिए भी खतरा है।
जरूरत इस बात की है कि ऐसी घटनाओं को केवल तात्कालिक हिंसा मानकर भुला न दिया जाए, बल्कि इनके पीछे छिपे गहरे सामाजिक और राजनीतिक कारणों की गहराई से जांच हो। यदि समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो बंगाल के अन्य जिलों में भी मुर्शिदाबाद जैसी तस्वीरें सामने आ सकती हैं।